शारदा सिन्हा: सुर की बेताज बादशाह
बिहार और भारत के संगीत प्रेमियों के लिए यह बेहद दुखद समाचार है कि लोक संगीत की महान हस्ती, “सुर की बेताज बादशाह” शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। उनकी मृत्यु से संगीत की दुनिया में एक अपूरणीय रिक्तता आ गई है। उनके निधन के साथ ही एक ऐसे युग का अंत हो गया, जिसने बिहार और उसके आसपास के क्षेत्रों में लोक संगीत को नई पहचान दी और उसे विश्व मंच तक पहुँचाया।
सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज भी सदैव बनी रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस… pic.twitter.com/sOaLvUOnrW
— Narendra Modi (@narendramodi) November 5, 2024
प्रारंभिक जीवन और बचपन
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के छोटे से गांव हुलास में हुआ। बचपन से ही शारदा का मन संगीत में रमता था। परिवार ने उनकी रुचि को समझते हुए उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दिलाई। इस शिक्षा ने उनके सुरों को एक मज़बूत आधार दिया और उन्हें संगीत की दुनिया में ऊंचाइयों तक पहुंचाने का रास्ता तैयार किया। उनके दिल में बिहार की लोकधुनें गूंजती थीं, जिनसे उन्होंने हमेशा एक गहरा जुड़ाव महसूस किया।
प्रसिद्धि की शुरुआत
सत्तर के दशक में शारदा सिन्हा का सफर संगीत के क्षेत्र में उभरने लगा। उन्होंने हिंदी और बॉलीवुड संगीत की ओर जाने के बजाय भोजपुरी, मैथिली, और मगही जैसे क्षेत्रीय भाषाओं में गाना शुरू किया, जो उस दौर में मुख्यधारा का हिस्सा नहीं था। इस कठिन राह को उन्होंने अपनी पहचान बना लिया। उनकी पहली हिट “भागलपुर के चुनरिया” ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया। इस गीत की सफलता ने दिखाया कि शारदा सिन्हा की आवाज़ में कुछ अनोखा और गहरा था।
लोक संगीत में योगदान
शारदा सिन्हा का संगीत संग्रह एक अमूल्य धरोहर है, जिसमें भक्ति गीतों से लेकर त्योहारों के गीत और शादी-ब्याह के लोकगीत तक शामिल हैं। “सासुजी से लुटरी,” “पिया से मिलनवा कैसे होई,” और “काहे तोसे सजना” जैसे गीत बिहार और आस-पास के क्षेत्रों में हिट बन गए। उनके गीतों ने बिहार की आत्मा को छुआ और प्रेम, विरह, और उमंग जैसे विषयों को जीवंत कर दिया। शारदा सिन्हा केवल एक गायिका नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक आइकन बन गईं जिन्होंने लोकगीतों को समय की मार से बचाया और उसे नए जमाने के सामने प्रस्तुत किया।
शारदा सिन्हा और छठ की अमर जोड़ी
छठ पर्व का नाम लेते ही हर बिहारी के मन में गंगा, सूरज, और छठी मईया की तस्वीर उभर आती है। लेकिन इस पर्व को शारदा सिन्हा की आवाज़ ने एक अलग ही पहचान दी है। उनकी मधुर आवाज़ में गाए गए छठ के गीत जैसे “केलवा के पात पर उगेलन सूरज,” “पार करिहो परब हो दीनानाथ,” और “होर-होर गोदी में सोनवा लागी” हर बिहारी की यादों का हिस्सा बन चुके हैं। उनकी आवाज़ में वो मिठास, वो सच्चाई और वो अपनापन है, जो हर बार दिल को छू लेता है और छठ पूजा के माहौल को जीवंत कर देता है।
बॉलीवुड में कदम
शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में भी अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। मैंने प्यार किया (1989) के गीत “काहे तोसे सजना” के बाद तो उनकी पहचान देशभर में फैल गई। 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर के लिए उन्होंने “कौन सी डोर” गीत गाया, जिसने नई पीढ़ी के संगीत प्रेमियों के दिल में जगह बनाई और उनकी आवाज़ को फिर से मशहूर कर दिया।
पुरस्कार और सम्मान
शारदा सिन्हा को उनके संगीत के प्रति समर्पण और योगदान के लिए कई सम्मान मिले:
पद्म भूषण (2018): लोक संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत का यह तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान।
पद्म श्री (1991): लोक संगीत को मुख्यधारा तक पहुंचाने के लिए।
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार: लोक संगीत को सहेजने और बढ़ावा देने में उनके जीवनभर के योगदान के लिए।
ये सम्मान सिर्फ उनकी कला के लिए नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए भी हैं।
बिहारी संस्कृति को संजोने का सपना
शारदा सिन्हा के दिल में हमेशा यह इच्छा रही कि बिहार का लोक संगीत कभी खो न जाए। उनकी मेहनत से संगीत में रुचि रखने वाले कई युवाओं ने भोजपुरी और मैथिली संगीत की ओर रुझान किया। बिहार में उनका एक संगीत विद्यालय भी है, जहां वे युवा कलाकारों को संगीत की बारीकियां सिखाती हैं और लोकगीतों की अमरता का पाठ पढ़ाती हैं।
उनकी धरोहर
शारदा सिन्हा का निधन एक युग के समापन का प्रतीक है, लेकिन उनके द्वारा गाए गए गीत, उनकी संगीत शिक्षाओं और उनके लोक संगीत के प्रति समर्पण ने एक अमर धरोहर छोड़ी है। वे भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीतों की गूंज हर शादी-ब्याह, हर त्योहार, और हर समारोह में हमेशा गूंजती रहेगी।
शारदा सिन्हा को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि। उनके जाने से जो खालीपन आया है, उसे कोई भर नहीं सकता, लेकिन उनके गीत हमेशा हमें उनके होने का अहसास दिलाते रहेंगे। उनकी आत्मा को शांति मिले।