छठ पर्व के नियम , रिवाज़,आस्था,और वैज्ञानिक महत्व
छठ पूजा भारत में विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड में मनाया जाने वाला एक प्राचीन और पवित्र पर्व है। इस पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। यह पर्व मुख्यतः नदी, तालाब या घाट पर किया जाता है और भक्तों द्वारा जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के दौरान चार दिन की कठोर तपस्या और नियमों का पालन किया जाता है, जो इसे सबसे कठिन व्रतों में से एक बनाता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा में भक्तों द्वारा सूर्य देव की आराधना इस विश्वास के साथ की जाती है कि वह उनकी मनोकामनाओं को पूरा करेंगे। सूर्य देवता को ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का देवता माना जाता है, और छठ पूजा के दौरान सूर्य की पूजा करने से भक्तों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं।
छठ पूजा की परंपराएं और रिवाज़
छठ पूजा चार दिन तक मनाई जाती है और हर दिन की अपनी एक विशेष परंपरा होती है:
नहाय खाय: पहले दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान कर पवित्रता का संकल्प लेते हैं और केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं।
खरना: दूसरे दिन भक्त निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद ही प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल की खीर खाते हैं।
संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन, व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसे संध्या अर्घ्य कहते हैं और यह पूजा का सबसे खास और भक्तिमय क्षण होता है।
प्रातःकालीन अर्घ्य: चौथे दिन, भक्त उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इसी के साथ व्रत समाप्त होता है।
छठ पूजा का वैज्ञानिक पहलू
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि इसका वैज्ञानिक पक्ष भी महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि सूर्य के निकट संपर्क से शरीर में विटामिन D का उत्पादन बढ़ता है, जो हड्डियों और त्वचा के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा, जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से मानसिक शांति मिलती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
छठ पूजा के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ
व्रत के दौरान शुद्धता और पवित्रता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है।
पूजा के दौरान घाटों पर सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए, विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के लिए।
अर्घ्य के समय भीड़ में धक्का-मुक्की से बचना चाहिए ताकि कोई दुर्घटना न हो।